UNIT – I PREPARATORY PROCESSES SINGEING ,
DESIZING , SCOURING & BLEACHING FOR COTTON ,
WOOL & SILK .
किसी भी कपडे को रंगाई
या छपाई से पहले अच्छी तरह तैयार किया जाता है , जिससे कि उस अच्छी तरह रंग चढ़ जाए
तथा रंगाई से पहले उसमे कोई दाग या धब्बा हो तो निकल जाए अन्यथा रंगाई या छपाई के
बाद वह नहीं निकलेगा| किसी भी कपडे को तैयार करने से पहले यह जानना जरूरी है कि
उसमे जो रेशे प्रयोग किये गए है , हमे उनके बारे में जानकारी होना बेहद जरूरी है
अन्यथा कपड़ा खराब भी हो सकता है |
कपडे में रंगाई करने से पहले अशुधियों को दूर
करने के लिए कुछ प्रोसेस की जाती है , जो निम्न प्रकार है :-
१ – SINGEING ( सिंजिंग )
२ – DESIZING (डीसाईजिंग )
३ – SCOURING ( स्कॉउरिंग )
४ – BLEACHING ( ब्लीचिंग )
1 – SINGEING – फैब्रिक से PROTURDING FIBRES को आग की लपटों
द्वारा जलाना |
2 – DESIZING – फैब्रिक में उपस्थित माँडी को हटाना |
3 – SCOURING – फैब्रिक में उपस्थित तेल , मोम , प्रोटीन , सॉफ्टनेस आदि स्वाभाविक अशुध्धियों को दूर करना |
4 – BLEACHING – फैब्रिक से NATURAL COLOUR को हटाकर केमिकल की मदद से बिलकुल
सफ़ेद कपड़ा तैयार करना |
COTTON
COTTON के कपडे की रंगाई करने से पहले कपडे से अशुद्धियो को दूर करने के लिए निम्न
प्रक्रिया अपनाई जाती है :-
SINGEING
– कपडे से अशुद्धियां
निकलने से पहले कपडे को SINGE किया जाता है
इस प्रक्रिया में कपडे की सतह पर जो उभरे हुए रेशे होते है , वह जल कर खत्म हो जाते है | सिंजिंग उन
कपड़ो पर की जाती है , जहां पर साफ़ सुथरे सतह वाले कपडे की जरूरत होती है | यह प्रक्रिया ज्यादातर कपडे के दोनों तरफ की जाती है |
इस प्रक्रिया में कपडे को आग की लपटों के ऊपर से तेजी से 300गज/min. की स्पीड से गुजारा जाता है , जिससे कपडे में
आग ना लग सके |
सिंजिंग के बाद कपडे को पानी में उतरा जाता है , जिससे कि कपडे पर कोई आग की चिंगारी रह जाती है तो वह पानी में बुझ जाए | कुछ सिंजिंग मशीन में सिंजिंग के साथ-साथ मांडी को निकालने की भी व्यबस्था होती है |
सिंजिंग सामान्यतः तीन प्रकार की मशीन के प्रयोग से की जाती है , वह निम्न है :-
1 –PLATE SINGEING MACHINE (प्लेट सिंजिंग मशीन) SPEED–150-250 YARDS/MIN
2 – ROTARY CYLINDER SINGEING
MACHINE (रोटरी सिंजिंग मशीन) SPEED–
3 – GAS SINGEING MACHINE (गैस सिंजिंग मशीन) SPEED–
1 –PLATE SINGEING
MACHINE (प्लेट सिंजिंग मशीन) :- यह एक प्रकार की सिंजिंग मशीन है | इस प्रकार की
सिंजिंग मशीन में प्लेट्स को अच्छे धधकते हुए आग के प्रबंध के द्वारा प्लेट्स में
लालिमा आने तक गर्म करते है | प्लेट्स की मोटाई
1-2INCH
तक होती है | उसके बाद
फैब्रिक के पैसेज का इस तरह प्रबंध करते है ताकि पहली तथा दूसरी तरफ फैब्रिक को
गर्म प्लेट्स से गुजारा जा सके |
उसके बाद कपडे को 150-250 YARDS/MIN की स्पीड से प्लेट्स के ऊपर से गुजारा जाता है | इसमे लगे COOLING SYSTEM से फैब्रिक को ठंडा कर अगली प्रोसेस
के लिए निकल लेते है |
2 – ROTARY CYLINDER
SINGEING MACHINE (रोटरी सिंजिंग
मशीन) :- इस प्रकार की सिंजिंग मशीन में कपडे को गर्म रोटरी
सिलेंडर में आंतरिक (INTERNAL)
आग रहती है और धीमी जलती है , इसीलिये एक अग्र सतह(FACE SURFACE) के ऊपर की ऊपर से कपडा गुजरता है | बाद में
सिलेंडर के घूमने की दिशा उल्टी हो जाती है , जब कपड़ा दिशा बदलता है | इसी की द्वारा
उभरे हुए रेशे जल जाते है और कपड़ा चिकना हो जाता है |
इस प्रकार की मशीन ज्यादातर पाइल
फैब्रिक और वेलवेट की सिंजिंग की जाती है | अगर दोनों तरफ
सिंजिंग करनी होती है तो दोनों तरफ सिलेंडर लगा देते है |
3 – GAS SINGEING
MACHINE (गैस सिंजिंग मशीन) :- यह एक उच्च क्वालिटी की सिंजिंग मशीन है | इसमे जगह – जगह रोलर लगे होते है जो कि फैब्रिक को गाइड करते है
ताकि कपड़ा आगे बढ़ सके | इस प्रकार की सिंगेंग मशीन की प्रक्रिया में कपडे को गैस
फ्लेम के ऊपर से एक निश्चित स्पीड से गुजारा जाता है , जिससे उभरे हुए रेशे खत्म हो जाते है और कपडे को कोई नुक्सान भी नहीं होता
है | सिंजिंग प्रक्रिया होने के बाद कपडे को पानी में उतारा जाता है जिससे कि
कपडे में सिंजिंग के दौरान कोई चिंगारी ना रह जाए , उसके बाद कपडे को सुखा कर अगली प्रोसेस के लिए निकाल लेते है |
यह बहुत ही उच्च क्वालिटी की मशीन है , जो कि बेस्ट सिंजिंग के लिए प्रयोग की जाती है |
DESIZING – डीसाइजिंग प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य वीविंग प्रक्रिया से प्राप्त कपडे
में से साइजिंग मटेरियल को हटाना है | साइजिंग
मटेरियल स्टार्च , गम , फैटी कंपाउंड
इत्यादि होते है |
यदि साइज़ पेस्ट पानी में घुलनशील है
तो फैब्रिक को पानी से क्रिया करा के साइजिंग मटेरियल को अलग किया जाता है | यदि SIZE , STARCH जैसी होती है तो वह पानी में अघुलनशील
होगी तो इस प्रकार की साइज़ को डीसाइजिंग की विभिन्न प्रक्रिया के द्वारा दूर की
जाती है |
OBJECTS OF DESIZING
:-
1 – FABRIC से स्टार्च को दूर करना |
2 – FABRIC की सोखने की क्षमता को बढ़ाना |
3 – FABRIC की डाई के प्रति लगाव को बढ़ाना |
4 – FABRIC को चमकदार बनाना ताकि डाई और प्रिंट अच्छी रहे |
5 – FABRIC को अगली प्रक्रिया के लिए तैयार करना |
यह प्रोसेस चार तरीकों से की जाती है :-
1 – ROT STEEPING(रोट स्टीपिंग)
2 – ACID STEEPING (एसिड स्टीपिंग)
3- OXIDATIVE
STEEPING(ओक्सीडेटीव स्टीपिंग)
4 – ENZYME
DESIZING(एंजाइम डीसाईजिंग)
1 – ROT
STEEPING(रोट स्टीपिंग) :- यह पुरानी तथा सस्ती प्रक्रिया है | इसमे कपडे को 30-40°C के रूम टेम्परेचर पर कपडे को गर्म पानी में डुबो
देते है तथा कपडे को 24 घंटे
तक डूबा रहने देते है , फिर कपडे को धो लेते
है |
2 - ACID
STEEPING (एसिड स्टीपिंग) :- इस प्रक्रिया में कपडे को 40-50°C पर गर्म पानी
में कपडे को डुबो लिया जाता है | इसमे सुल्फुरिक
एसिड का प्रयोग किया जाता है | इसमे कभी – कभी कपडा पोरी तरह न सूखने की बजह से कपडे में चखते से पड जाते है |
3- OXIDATIVE
STEEPING(ओक्सीडेटीव स्टीपिंग) :-इस प्रक्रिया में फैब्रिक को 30-40°C के रूम
टेम्परेचर पर गर्म पानी में कुछ ओक्सीडेन्ट एजेंट को मिलाते है जिससे कपड़ा
ओक्सीडाईजड होकर स्टार्च , गम आदि को हटा
देता है |
कुछ ओक्सीडेन्ट एजेंट निम्न है :-
1 – SODIUM HYPOCHLORITE(सोडियम हाइपोक्लोराइट) - 2.0-5.0 G/L
2 – HYDROGEN PER OXIDE (हाइड्रोजन परऑक्साइड) - 3.0-6.0 G/L
3 – SODIUM BROMIDE (सोडियम ब्रोमाइड) - 1.0-2.0 G/L
4 – ENZYME
DESIZING(एंजाइम डीसाईजिंग) :- एंजाइम डीसाईजिंग प्रक्रिया करने के लिए कपडे से एंजाइम के द्वारा माडी को
नुकाला जाता है | एंजाइम्स जैब – उत्प्रेरक
होते है |
यह स्टार्च को अपघटित करते है | एंजाइम तीन प्रकार के होते है – BACTERIAL , MAULT & PANCREATE | यही एंजाइम स्टार्च को अपघटित करने का कार्य करते है |
0.01% एंजाइम तथा 0.2 % नमक लेकर घोल को बना लिया जाता है और इस घोल में कपडे को
8 घंटे के लिए डाल कर छोड़ देते है | उसके बाद साफ़
पानी से धो लेते है और माडी निकल जाती है |
SCOURING – इस प्रक्रिया में कपास के कपडे के ऊपर चडी प्राकृतिक गन्दगी को निकाल कर
दिया जाता है | फैब्रिक से स्वाभाविक अशुद्धियो को दूर करने की
प्रक्रिया स्काउरिंग कहलाती है | इस प्रक्रिया
में प्राकृतिक अशुद्धियाँ जैसे – वैक्स , नाइट्रोजन से सम्बंधित पदार्थ , बीज , पत्तियां आदि हटा डी जाती है , जिसके बाद कपडे
को सुविधानुसार रंगा और छापा जा सकता है | इस प्रक्रिया
में कपडे को कास्टिक सोडा के घोल में एक निर्धारित मशीन जिसे कियर कहते है , में उबाला जाता है | कियर दो तरह से
प्रयोग में आती है एक वर्टीकल तथा एक हॉरिजॉन्टल | ज्यादातर वर्टीकल कियर प्रयोग में लायी जाती है |
कियर दो प्रकार की होती है :-
1 – PRESSURE BOIL (प्रेशर बायल)
2 – OPEN BOIL (ओपन बायल)
1 – PRESSURE
BOIL (प्रेशर बायल) :- प्रेशर बायल कियर एक ऐसा उपकरण है , जिसमे एक
बेलनाकार लोहे का बर्तन होता है , जिसके ऊपर
ढक्कन लगा होता है | इसमे द्रव को घुमाने के लिए पंप तथा उर्जा बचाने के लिए
हीट एक्सचेंजर , दवाव मापने के लिए दवाव सूचक यन्त्र , हवा ,
वाल्व तथा भाप के लिए पानी की पाइप लगी होती है |
यह 5 फुट डायामीटर तथा 8 – 10 मीटर लम्बाई का होता है | यह अलग-अलग कैपेसिटी के होते है |
प्रेशर बॉईल कियर में कपडे को उबालने के लिए निम्न मापदंड अपनाए जाते है :-
कॉस्टिक सोडा - 2 – 3 %
सोडियम सल्फाइट - लगभग 1 %
SODIUM
CARBONATE - 1 %
वेटिंग एजेंट - 0.01 %
मटेरियल तथा घोल का अनुपात – 1:4 से 1:5
PRESSURE - 1.8
KG/SQUARE cm.
TEMPERATURE -
130°C
TIME -
8 – 10 घंटे
कियर में कपडे के अनुसार घोल भर देते है | घोल में उपर्युक्त दिए सभी मटेरियल मिलाये जाते है | उसके बाद घोल में कपडे को दाल दिया जाता है | कियर को 130°C पर गर्म करते है | यह प्रक्रिया 8 – 10 घंटे तक चलती है | उसके बाद कियर के निचले हिस्से से पंप द्वारा घोल को
निकाल दिया जाता है | इसे हीटर से नीचे ऊपर गुजारा जाता है | यह प्रक्रिया नीचे से ठंडा घोल निकलने
तथा ऊपर से गर्म घोल गिरने तक निरंतर चला करती है | मशीन में लगे प्रेशर गेज के द्वारा अन्दर का ताप नियंत्रित किया जाता है | कपडे को उबालने के पश्चात घोल को बाहर निकाल देते है और कियर के ठंडा होने
के पश्चात कपड़ा बाहर निकाल लिया जाता है , जिसे अच्छी तरह
धो लिया जाता है |
2 – OPEN BOIL (ओपन बायल) :- ओपन बॉईल ज्यादातर उन कपड़ो पर की जाती है जो रंगीन किनारी या रंगीन पैटर्न
के साथ होते है | ओपन बॉईल स्कोउरिग नीचे दिए निम्न निर्देशों के अनुसार
कर सकते है :-
सोडा ऐश - 2.0 – 4.0
सोडियम सिलिकेट - 1.0 – 2.0
वेटिंग एजेंट - 0.2 – 0.5
सोडियम हेक्सामेटा फोस्फेट - 0.2 – 0.5
सोडियम सल्फाईट - जरूरत के
मुताबिक़
मटेरियल तथा द्रव का अनुपात - 1 : 5
तापमान - 60 – 70°C
समय - 8 – 12 घंटे
BLEACHING:- रेशो के अन्दर उपस्थित प्राकृतिक रंग को
दूर करके कपडे को सफ़ेद बनाने की प्रक्रिया को ब्लीचिंग कहते है | बिभिन्न
प्रकार के रेशों को भिन्न – भिन्न गुणों के आधार पर भिन्न –
भिन्न प्रकार से ब्लीच किया जाता है |
कॉटन
को दो तरीके से ब्लीच किया जाता है :-
1 – सोडियम हाइपोक्लोराइट ( NaOCl )
2 – सोडियम हाइड्रोपराक्साइड (H2O2)
1 – कॉटन
को सोडियम हाइपोक्लोराइट से ब्लीच करना :-
कॉटन फैब्रिक को सोडियम हाइपोक्लोराइट से ब्लीच किया जाता है | इस
सलूशन को किसी मेथड के द्वारा बनाया जाता है | इंडस्ट्री
में इसे निम्न प्रकार से बनाते है |
कास्टिक
सोडा के बिलियन में क्लोरीन की क्रिया कराने पर बिलयन में क्लोरीन अब्जोर्ब(ABSORB) हो जाती है | जिसके फलस्वरूप सोडियम हाइपोक्लोराइट प्राप्त होता है | सोडियम
हाइपोक्लोराइट की CONCENTRATION , TITRATION
द्वारा g/l में
निकाली जाती है |
1 – 2NaOH + cl2 --------------------------> NaOCl
+ NaCl
2 - 6 NaOH + 3cl2 --------------------------> 3 NaOCl
+ 3 NaCl + 3H2O
सोडियम
हाइपोक्लोराइट के घोल से फैब्रिक को गुजारा जाता है | इस
प्रक्रिया में सोडियम हाइपोक्लोराइट की क्रिया फैब्रिक के साथ कराई जाती है | इस
प्रक्रिया को पूर्ण होने में 6-7 घंटे
का समय लगता है |
ब्लीचिंग हो जाने के पश्चात फैब्रिक को साफ़ पानी से धुल
दिया जाता है |
इस प्रक्रिया में निम्नलिखित टर्म्स को प्रयोग में लाते
है :-
सोडियम
हाइपोक्लोराइट - 20 G/L
PH - About 10.0
Temperature - 30 – 35oC
Time - 4 – 6 hour
M : L - 1 : 3 to 1:4
2 - कॉटन
को हाइड्रोजन परऑक्साइड से ब्लीच कराना :- हाइड्रोजन परऑक्साइड एक यूनिवर्सल ब्लीचिंग एजेंट है | यह
10 ,
20 ,30 ,100 , 130 strength के आयतन में
उपलब्ध रहता है | यह रसायन बाजार में आसानी से मिल जाता है हाइड्रोजन
परऑक्साइड ,
सोडियम हाइपोक्लोराइट की अपेक्षा ज्यादा मंहगा एजेंट है
हाइड्रोजन
परऑक्साइड की विलियन क्षारीय विलियन की अपेक्षा अधिक स्थायी होता है | PH मान बढाने पर हाइड्रोजन
परऑक्साइड की STABILITY घटती है | जो निम्न
प्रकार है :-
PH
|
REDUCTION TIME
|
6.8
|
100
|
7.9
|
120
|
9.9
|
35
|
सोडियम सिलिकेट , हाइड्रोजन परऑक्साइड के स्थायित्व को बढाता है | इस
ब्लीचिंग प्रक्रिया में निम्न तथा प्रयोग किये जाते है :-
हाइड्रोजन
परऑक्साइड
|
0.5
– 1.0 %
|
SODA AISH
|
1.0 %
|
सोडियम सिलिकेट
|
1.0
|
वेटिंग एजेंट
|
0.10
|
M : L
|
1 : 4 to 1 :5
|
TEMPERATURE
|
70 – 80 OC
|
TIME
|
8 – 12 HOUR
|
WOOL
ऊनी रेशे
बहुत हे भावुक होते है | इसीलिए इनमे सिंजिंग और डीसाईंजिंग प्रक्रिया नहीं की
जाती है | इसके स्थान पर ऊनी फैब्रिक्स में से धुल , मिटटी , सेल्यूलोस , सूखा हुआ
पसीना आदि को कार्बोनाईजिंग प्रक्रिया द्वारा किया जाता है |
सलुलोज
अशुद्धियो को दूर करने के लिए ऊनी रेशो को सुल्फुरिक अम्ल से धोया जाता है , इसी प्रक्रिया को कार्बोनाईजिंग कहते है | इसके बाद अगली प्रक्रिया क्रोपिंग , स्काउरिंग , मिलिंग और
ब्लीचिंग प्रक्रिया अपनाई जाती है |
क्रोपिंग :-
ऊनी रेशों
से बने वस्त्रो में सतह पर उभरे हुए रेशो को सिंजिंग प्रक्रिया से दूर नहीं किया
जा सकता है , क्यूंकि सिंजिंग प्रक्रिया से ऊनी रेशे काले पदार्थ में
बदल जाते है , जिसे निकालना बहुत मुश्किल हो जाता है | इसीलिये ऊनी वस्त्रों में क्रोपिंग का प्रयोग करते है | इस मशीन में तेज धार के ब्लेड , रोलर पर
लगे होते है , जो बहुत तेज रफ़्तार से घुमते है , जब कपड़ा इन ब्लेड्स से गुजारा जाता है तो उसकी सतह के रेशे का जाते है |
SCOURING :- WOOL एक ANIMAL फाइबर है तथा इस फाइबर की सतह की सरंचना बहुत संयुक्त
होती है तथा इसकी बाहरी सतह एक स्पेशल प्रोटीन और केरेटीन की बनी होती है | इसमे 30 – 70 % तक अशुद्धियाँ होती है | इन सभी अशुद्धियो को स्काउरिंग प्रक्रिया द्वारा दूर किया जाता है |
ऊनी वस्त्रो
में स्काउरिंग साबुन के घोल के द्वारा की जाती है तथा तापमान 60OC रखते है |
स्काउरिंग
प्रक्रिया इसमे चार तरीको से की जाती है :-
1 – Emulsion Scouring (इमल्शन स्काउरिंग)
2 – Swint Scouring (स्विंट स्काउरिंग)
3 – Solvent Scouring ( साल्वेंट स्कोउरिंग )
4 – Freezy Scouring (फ्रीज़ी स्काउरिंग)
मिलिंग :- मिलिंग को
फेल्टिंग भी कहा जाता है | फेल्टिंग एक
ऐसा गुण है जो ऊनी रेशों में ही मुख्यतः पाया जाता है | इस प्रक्रिया में रेशे सतह पर अच्छी तरह फ़ैल कर जम जाते है , जिससे कपडे की बनावट भी दिखाई नहीं देती है | इस तरह के वस्त्र बहुत गर्म होते है क्यूंकि बनावट के बीच की जगह अच्छी तरह
ढक जाती है |
इस तरह के गुण लाने के जिस मशीन का प्रयोग किया जाता है
उसे मिलिंग कहा जाता है |
यह प्रक्रिया
निम्न प्रकार से की जाती है :-
1 – Soap Milling
2 – Acid Milling
3 – Alkali Milling
ब्लीचिंग :- ऊनी रेशो की
ब्लीचिंग हाइड्रोजन परऑक्साइड से की जाती है | ब्लीचिंग के दौरान सोडियम हाइड्रोक्साइड का प्रयोग नहीं करते है क्यूंकि
ऊनी रेशे क्षारीय बिलयन में घुल जाते है |
ऊनी फैब्रिक की
ब्लीचिंग दो तरीके से की जाती है :-
1 – Oxidative bleaching(ओक्सीडेटीव ब्लीचिंग) 2 – Reductive bleaching(रीडक्तिव)
1 – Oxidative bleaching(ओक्सीडेटीव ब्लीचिंग) :- इस प्रकार के
ब्लीचिंग मेथड में ऊनी फैब्रिक्स को हाइड्रोजन परऑक्साइड के घोल में 8 – 9 PH पर 60OC पर 1 घंटे के लिए रखा जाता है | एलकली के प्रयोग से उन के Damage होने के Chances ज्यादा रहते है , तो यह प्रक्रिया बेहत सुविधाजनक है |
2 – Reductive bleaching(रीडक्तिव) :- इस प्रकार के Method से ऊन की
ब्लीचिंग करने के लिए दो मुख्य रसायन का प्रयोग किया जाता है – सोडियम
डीथायोनाईट और थाईयूरिया डाईऑक्साइड |
उन की ब्लीचिंग
के लिए सोडियम डीथायोनाईट एक अच्छा Reducing agent है |
सोडियम डीथायोनाईट
के घोल में PH 5.5-6.0 लेकर उन को एक
घंटे के लिए 45-65OC पर TREAT किया जाता है |
थाईयूरिया
डाईऑक्साइड से ब्लीच करने के लिए इसके घोल में उन को 800C पर PH 7 रखकर एक घंटे तक क्रिया कराते है |
इन दोनों
प्रक्रियाओ से हम प्राकृतिक कलर को दूर कर सफ़ेद रंग पा सकते है |
SILK
सिल्क मुख्यतः
एक एनिमल(ANIMAL)
फाइबर है , जो कि सिल्क
हमे ककून से प्राप्त होता है | इसके बाद इसमे
डीगम्मिंग प्रक्रिया और वेटिंग प्रक्रिया करने के बाद इसकी स्कोउरिंग की जाती है | इसमे सिंजिंग प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती है क्योंकि सिल्क फाइबर बहुत ही
नाजुक होता है और यह सिल्क फाइबर को जला या सिकोड़ सकता है जिसे फिर बापस लाना
असंभव है |
IMPURITY को दूर करने के लिए SCOURING प्रक्रिया
अपनाते है |
स्काउरिंग :- सिल्क में
मुख्यतः गोंद होता है , जिसकी मात्र 22 – 25 % तक रहती है | इसको स्कोउरिंग करने के लिए इसमे साबुन तथा सोडा ऐश का
प्रयोग किया जाता है | यह प्रक्रिया कियर मशीन में 1 घंटे तक 50OC के तापमान में दो से तीन बार की जाती है |
ब्लीचिंग :- सिल्क की ब्लीचिंग हाइड्रोजन परऑक्साइड से की जाती है | हाइड्रोजन परऑक्साइड के घोल में सिल्क को 75 – 80 OC पर PH 9 – 10 रखकर 7-8 घंटे तक TRAET किया जाता है |जिससे सिल्क से
प्राकृतिक रंग दूर होकर सफ़ेद रंग आ जाता है |
UNIT – II BRIEF STUDY
ON THE NECESSITY & USE OF OPTICAL WHITENING AGENTS.
ब्लीच किये हुए कपडे को चमकदार बनाने के लिए व्हाईटीनिंग
/ ब्राईटिनिंग
एजेंट का प्रयोग करते है | यह एक विशेष प्रकार के डाई होती है , परन्तु यह फैब्रिक को कोई रंग प्रदान नहीं करते है | इनका मुख्य गुण फैब्रिक को चमकदार बनाना होता है |
यह डाई प्रकाश की अल्ट्रावायलेट किरणों को अवशोषित करके
प्रत्यक्ष (दिखाई देने
बाली ) प्रकाश में
परिवर्तित कर देती है , जिसके कारण
फैब्रिक की चमक बढ़ जाती है | चूंकि ये एक प्रकार क्र ऑप्टिकल इफ़ेक्ट भी है , अतः इन्हें ऑप्टिकल व्हाईटीनिंग / ब्राईटिनिंग एजेंट भी कहा जाता है |
उदहारण के लिए रानिपाल –S का प्रयोग कृतिम कपडे तथा ब्लेंडेड कपडे जैसे – टेरीलीन , नायलॉन , टेरीकॉट आदि के लिए किया जाता है |रानी – S ब्लेच नहीं है , इससे हल्का नीला आमास बनता है जिससे कपडे का पीलापन ढक
जाता है , तथा कपडा
चमकदार प्रतीत होने लगता है |
व्हाईटीनिंग / ब्राईटिनिंग एजेंट की रासायनिक संरचना डाई से मिलती
जुलती है , जिस प्रकार डाई
का वर्गीकरण किया जाता है , उसी प्रकार इनका भी वर्गीकरण किया जाता है |
ऑप्टिकल व्हाईटीनिंग / ब्राईटिनिंग एजेंट अधिकतर हर वाशिंग पाउडर का एक हिस्सा
होता है , इसकी सरंचना
काफी जटिल है | ज्यादातर ये
आर्गेनिक कंपाउंड से मिलाकर बनाए जाते है |
STRUCTURE
OF OPTICAL WHITENING AGENT :-
CLASSIFICATION OF OPTICAL
BRIGHTENING/WHITENING AGENTS.
OPTICAL BRIGHTENER / WHITENER
AGENT को निम्न वर्गों में
बांटा गया है :-
1 – DIRECT BRIGHTENER(डायरेक्ट)
2 – DISPERSE BRIGHTENING AGENTS.
1 – DIRECT BRIGHTENER(डायरेक्ट) :- यह एजेंट पानी में घुलनशील होते है | यह नेचुरल और
पालीएमाइड के रूप में सिंथेटिक फाइबर में सफेदी तथा चमक के लिए प्रयोग किया जाता
है |
2 – DISPERSE BRIGHTENING AGENTS :- यह एजेंट पानी में अघुलनशील होते है और
जब MASS COLORATION होता है , तब ये डिस्पर्स डाई के साथ प्रयोग
में लायी जाती है | यह हमेशा सिंथेटिक मटेरियल जैसे पॉलियामाइड पॉलिएस्टर , ऐसीटेट
के लिए प्रयोग की जाती है |
Optical Brightening Agent को प्रयोग करने की विधि :- पॉलिएस्टर तथा सेल्लुलोज रेशों के लिए
अलग – अलग तरह के Brightening
Agent प्रयोग में लाये जाते
है | ज्यादातर Brightening
Agent 50oc पर सेल्यूलोस के रेशों पर क्रिया करते है |
अच्छे परिणाम के लिए 5 gm/L के हिसाब से नमक मिलाया जा सकता है | जानवरों
से प्राप्त रेशों को 0.25 – 2.5 %
Brightening Agent 40 – 50 oC पर 5% फोरमिक अम्ल या ऐसिटिक
अम्ल (80%) के साथ लगाया जा सकता है
| पॉलियामाइड में भी यही प्रक्रिया अपनाते है |
PROPERTIES OF OPTICAL WHITENING AGENT :-
1 – Whiteness & Brightness :- यदि ध्यान से देखे तो सफ़ेद या ब्लीच किया हुआ कपडा
पीलापन लिए हुए होता है , इस पीलेपन के कारण कपड़ा ज्यादा गंदा लगता है , इस पीलेपन
को हटाने के लिए कपडे पर नील भी लगाई जाती है | हल्का पीलापन लिए हुए कपडे को
ज्यादा चमकदार बनाना होता है | Optical Brightening Agent अल्ट्रावायलेट रेडिएशन को सोखकर उन्हें रिफ्लेक्ट कर
देता है , जिसके कारण सफ़ेद कपड़ा और भी अधिक सफ़ेद और चमकदार नजर आता है |
2 – Light Fastness (प्रकाश में पक्कापन) :- हर Optical Brightening Agent की अलग-अलग पक्कापन होता है | सेल्यूलोज व प्रोतिएँ वाले
तंतुओं में Light Fastness
No-2 देकर आंकते है , लेकिन
यह ध्यान देना जरूरी है कि ऐसे फाइबर में खराब light Fastness होने के बावजूद भी कोई फर्क नहीं पड़ता है | Optical Brightening Agent की Light Fastness इसलिए खराब होती है क्योंकि यह प्रकाश को सोखते है |
3 – Washing Fastness (धुलाई में पक्कापन) :- Optical Brightening Agent की Washing Fastness सेलुलोज और प्रोटीन फाइबर में No-3 देकर आंका गया है , जो कि केवल संतोषजनक ही है |
सेल्लुलोजिक फैब्रिक की धुलाई जैसे-जैसे ज्यादा होती है वैसे-वैसे Optical Brightening Agent जो कि कॉटन के तंतु से रासायनिक रूप से जुड़े
रहते है , वह धीरे – धीरे टूट कर तंतु से दूर होते चले जाते है , इसीलिये इसकी
वाशिंग फास्टनेस अच्छी न होकर केवल संतोषजनक ही होती है |
कुछ प्रमुख Optical Brightening Agent :-
I – Triazine – stilbeness
II – Coumarins
III – Limidiazolines
IV – Diazoles
V – Triazoles
VI – Benzoxazolines
VIII – Bipheny-Stilbenes
Uses Of Optical Brightening Agent :-
1 – यह पॉलिएस्टर तथा सेल्लुलोजिक रेशो पर सफेदी लाने के लिए
प्रयोग किये जाते है |
2 – ज्यादातर वाइट –R Optical Brightening Agent प्रयोग में लाया जाता है
UNIT – III CLASSIFICATION OF DYES ACCORDING TO APPLICATION
, PRINCIPLE CLASSES OF NATURAL & SYNTHETIC DYES.
रंगों को दो भागो से बांटा गया है | (i) – डाई
(ii) – पिगमेंट
नेचुरल डाई – कपडे को
रंगने के लिए जिन रंगों को प्राकृतिक तरीके से प्राप्त किया जाता है , उन्हें
प्राकृतिक रंग कहते है | प्राकृतिक रंग अधिक मात्रा में उपलब्ध ना होने के कारण
विज्ञानको ने कृत्रिम रंगों का निर्माण बिभिन्न रेशों के गुणों के आधार पर किया है
| लेकिन आजकल प्राकृतिक रंगों से रंगे कपडे विदेशों में ज्यादा पसंद किये जा रहे
है | कुछ प्राकृतिक रंग निम्न तरीके से प्राप्त किये जाते है :-
1 – अनार के उपयोग से –
(i) – सर्वप्रथम अनार के फल के छिलके को अच्छी तरह धुप में 10 – 12 दिन तक सुखाया
जाता है |
(ii) – फिर सूखे हुए छिलको को बारीकी से पीसा
जाता है | फिर पान को गर्म करके उसमे अनार के पिसे छिलकों के पाउडर को डाल दिया
जाता है , तथा 30 – 45 मिनट रंग गाढ़ा होने तक उबालते है |
(iii) – ऊपर तैयार विलियन को ठंडा करके इसकी PH जांचकर जो कि 8 के करीब आती है |
हरडा से रंग को निकालने की विधि :-
(i) – हरडा के फल के
चिलाको को १० दिन तक धुप में सुखाकर बारीक पीसकर तथा छान लिया जाता है |
(ii) – 80 gm/L के हिसाब से पिसे पाउडर को पानी में मिलाया जाता है और खूब चलाते है ताकि
पानी में गुठलियाँ ना रहे , इसके बाद विलियन को आधा रहने तक उबाला जाता है , तथा
ठंडा होने के बाद छान लेते है |
मेंहदी से रंग निकालने की विधि :-
(i) – मेंहदी की
पत्तियों को धूप में करीब १० दिन तक सुखाया जाता है |
(ii) – इसके बाद 150 gm/2L के हिसाब से पत्तियों को पानी में डालकर 40 – 50oC पर 1400 ML विलियन बचने तक उबाल कर छान लेते है |
प्राकृतिक रंगों को रंगने की विधि :-
प्राकृतिक रंगों को दो
विधियों से रंगा जाता है :-
1 – एग्जॉस्ट प्रक्रिया
2 - मोर्डेन्ट प्रक्रिया
1 – एग्जॉस्ट प्रक्रिया :-
(i) – ऊपर दिए बनाए गए
प्राकृतिक रंगों में अनार के 100 ML रंग को दो लीटर पानी
में तथा हरडा के 125 ML रंग को आधा लीटर पानी में मिलाते है | लेकिन मेंहदी को 350 gm/L के हिसाब से रंग डालते है |
(ii) – इसमे रेशों को 25
gm तक डालकर 20-30 min. तक उबालते है |
(iii) – रंगाई प्रक्रिया
पूरी होने के बाद घोल को निकल लेते है , और रेशो को 12 घंटे तक छाया में सुखाते है
|
2 -
मोर्डेन्ट प्रक्रिया :-
(i) – इसके लिए 500 ML पानी लेते है तथा उसमे 10 gm एलम डालकर अच्छी तरह
मिलाते है |
(ii) – एग्जॉस्ट
प्रक्रिया से रंगे रेशों को इस विलियन में डालकर 15-20 मिनट तक चलाते है |
(iii) – इसके बाद रेशो
को निकल कर , रेशो को 12 घंटे तक सुखाते है |
(iv) – 1000 ML पानी को 60oC पर साबुन डालकर गर्म करते है | रेशों को अच्छी तरह
से धो कर तथा 2-3 बार ठन्डे पानी से धो कर निचोड़ते है |
कृत्रिम रंग :-
कपड़ों को रंगने के लिए
रेशो की प्रकृति (Nature) के अनुसार बिभिन्न
प्रकार के रसायनों को मिलाकर बनाए गए रंग
कृत्रिम रंग कहलाते है | कृत्रिम रंगों को उनकी पानी से क्रिया के आधार पर दो
भागों में वर्गीकृत किया गया है :-
1 – Water Soluble(पानी में घुलनशील)
2 – Water Insoluble(पानी में अघुलनशील)
1 – Water Soluble(पानी में घुलनशील) :- जो रंग पानी में
आसानी से घुल जाते है तथा इन रंगों को घोलने के लिए किसी भी रसायन या कोई और
पदार्थ की आवश्यकता नहीं होती वो डाई WATER SOLUBLE डाई कहलाते है |
जैसे – डायरेक्ट डाई ,
एसिड डाई , बेसिक डाई और रिएक्टिव डाई |
2 – Water Insoluble(पानी में अघुलनशील) :- जो रंग पानी में
आसानी से नहीं मिलाये जा सकते है तथा जिन रंगों को पानी में पूरी तरह से मिलाने के
लिए बिभिन्न प्रकार के रसायनों का प्रयोग किया जाता है , ऐसे रंग Water Insoluble(पानी में अघुलनशील) कहलाते है |
जैसे – वैट डाई , सल्फर
डाई और डिस्पर्स डाई आदि |
UNIT – IV DEFINITION OF DYE &
METHOD OF DYE .
DYE – डाई को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि एक ऐसा पदार्थ (द्रव) जो कि
फाइबर पर फैलाकर अथवा विलियन बना कर प्रयोग किया जाता है उसे डाई कहते है |
जबकि पिगमेंट रंग को
मकेनिकल प्रकिया द्वारा फाइबर पर प्रयोग किया जाता है , यह पानी में अघुलनशील होते
है तथा यह रंग फाइबर के अन्दर प्रवेश ना होकर ऊपर सतह पर जम जाते है |
डाई पानी में घुलनशील भी
होती है तथा अघुलनशील भी होती है |
METHOD OF DYE :- सामान्यतः डाई को कपडे
पर प्रयोग करने के लिए निम्न मेथड का प्रयोग किया जाता है :-
1 -EXHAUST METHOD
2 – PAD- BATCH METHOD
3 – BALE DYIENG
4 – BATIK DYEING
5 – BEAM DYEING
6 – SPECK DYEING
7 – CHAIN DYEING
8 – JIG DYEING
9 – PIECE DYEING
10 – RANDOM DYEING
1 – EXHAUST METHOD :- यह रंगाई का सबसे
महत्वपूर्ण मेथड है , लगभग सभी प्रकार के फैब्रिक्स को इस प्रक्रिया द्वारा रंगा
जा सकता है |
इस मेथड में रंगाई की
मशीनो का प्रयोग कर फैब्रिक्स की रंगाई की जाती है |
इस विधि में कपडे की
रंगाई तीन चरणों में पूर्ण होती है , जो नीचे दिए गए है |
मशीन में कपडे को भरना
रंग डालना तथा
अच्छी तरह मिलाना
सूती या अन्य प्रकार
के कपडे को मशीन में डालना
नमक या ग्लोबर लवण डालना
रंग पक्का करने के लिए फिक्सिंग
एजेंट मिलाना
100°C पर रंगाई करना
धुलाई
करना
उपर्युक्त प्रक्रिया
ज्यादातर सभी प्रकार के सूती फैब्रिक्स की
रंगाई में कार्य करती है |
2 – PAD – BATCH
METHOD :- ऐसे रंग जिनमे क्लोरीनेटिंग ग्रुप होता है , वह ही पैड – बैच विधि से रंगाई
करने में काम आते है | लेकिन इस तरह से रंगे हुए कपडे का रंग बहुत गाढा नहीं होता
है | हलके तथा माध्यम शेड ही इस विधि से प्राप्त होते है |
इस विधि में कपडे को रंग के विलियन से , जिसमे ग्लोबर लवण – 15-20gm /L ,
SODA AISH : 2-3 gm/L , सेकुस्तेरिंग एजेंट :0.5-1.0 gm/L तथा आवश्कतानुसार रंग
होता है | इसमे 60% पिक-अप से पेड करते है | पैड किये हुए कपडे को पॉलिथीन से
अच्छी तरह ढक देते है तथा 15-20 घंटे के लिए छोड़
देते है | बाद में कपडे को अच्छी तरह
ठन्डे पानी से धोकर साबुनीकरण करते है | साबुनीकरण में तापमान 75-80oC रखते है | 2
ग्राम पर लीटर के हिसाब से डिटर्जेंट और सोडा डालते है |
इन रंगों को
धुलाई में पक्का करने के लिए डाई फिक्सिंग एजेंट का प्रयोग करते है |
3 – BALE
DYEING METHOD(बेल डाइंग पद्दति) :- यह सूती कपडे को रंगने का सबसे सस्ता तरीका है | इसमे
कपडे को बिना किसी भी प्रक्रिया से गुजारे हुए (सिंजिंग , डीसाइज़िंग , ब्लीचिंग
आदि ) साइज़ को ठन्डे पानी से धुलकर इस पर रंगाई कर दी जाती है | इस विधि से एक या
दो बार प्रयोग किये जाने वाले फैब्रिक तैयार होते है |
4 – BATIK
DYEING(बाटिक डाइंग पद्दति) :- यह पद्दति सबसे पुरानी है | इसमे कपडे पर मोम की परत चढा देते है और
इसको ठन्डे कलर से डाई कर देते है | इसमे रिएक्टिव , इंडिगो , नप्थोल रंग प्रयोग
में लाये जाते है | मोंम के सूखने के बाद चटक जाती है जिससे जगह – जगह आड़ी – टेंडी
लाइन्स कपडे पर बन जाती है |
5 – BEAM
DYEING METHOD(बीम डाइंग पद्दति) :- इस प्रकार की पद्दति में वार्प को वीविंग क्रिया से पहले डाई करते है
इसके लिए वार्प को एक छिद्रयुक्त बीम पर लपेट देते है और बीम डाइंग मशीन में रखकर
डाई कर दिया जाता है |
6 – SPECK DYEING METHOD(स्पेक{दाग लगे}डाइंग पद्दति) :- यह पद्दति हाँथ से की जाने वाली पद्दति है | इसमें ज्यादातर वूल , बुना
हुआ वूल (WORSTED WOOL) तथा दाग लगे कपड़ो की रंगाई की जाती है | लेकिन फिर भी एक स्पेशल डिजाईन
उभर आती है |
7 – CHAIN
DYEING METHOD(चैन डाइंग पद्दति) :- यह रंगाई पद्दति उन धागों व कपड़ो में अपनाई जाती है जिनकी तन्य मजबूती
कम होती है | कई प्रकार के कटे-फटे कपडो को जोड़कर एक फैब्रिक तैयार किया जाता है
इसीलिए इसे चैन डाइंग कहा जाता है क्योंकि इसमे एक अलग –अलग कपड़ो की चैन बनाकर
रंगाई करते है जो कि प्रोडक्शन अच्छा आता है |
8 – JIG
DYEING METHOD(जिग डाइंग पद्दति) :- इस पद्दति द्वारा रंगाई जिगर मशीन में ओपन फॉर्म में की जाती है | जिगर
मशीन में कपडे को सेट कर दिया जाता है और कपडे की रंगाई कर डी जाती है |
9 – PIECE
DYEING METHOD(पीस डाइंग पद्दति) :- इस प्रकार की पद्दति में कपडे को कटे हुए फॉर्म में रंगाई करते है
इसमें कपड़ा एक पीस में होता है और उसकी पीस में ही रंगाई कर देते है |
10 – RANDOM
DYEING METHOD (रैंडम डाइंग पद्दति) :- इस प्रकार की रंगाई पद्दति में कपडे या यार्न पर अचानक से जगह-जगह
रंगाई कर देते है|इसमे SKIEN , CONE आदि की रंगाई की जाती है
|पहले एक तरफ से रंगाई शुरू करते है वाकी अलग रंग से दूसरी तरफ से रंगाई प्रक्रिया
की जाती है|
4 comments:
nahi hai
Mujhe TP ka pdf chahiye please
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